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वसंती दोहे / कैलाश गौतम

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गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल ।
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल ।।

लगे फूँकने आम के बौर गुलाबी शंख ।
कैसे रहें क़िताब में हम मयूर के पंख ।।

दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम ।
आओ लिख दूँ चँद्रमा आज तुम्हारे नाम ।।

हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव ।
सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पड़ाव ।।

कानों में जैसे पड़े मौसम के दो बोल ।
मन में कोई चोर था, भागा कुंडी खोल ।।

रोली-अक्षत छू गए खिले गीत के फूल ।
खुल करके बातें हुई मौसम के अनुकूल ।।

पुल बोए थे शौक से, उग आई दीवार ।
कैसी ये जलवायु है, हे मेरे करतार ।।