Last modified on 6 जनवरी 2011, at 03:57

संबंध / विमलेश त्रिपाठी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:57, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हमारे सच के …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे सच के पंख अलग-अलग
उड़ना चाहता एक सच
दूसरे से अलग
अपनी तरह अपनी ऊँचाई

साथ उड़ने की हर कोशिश में
टकराते
और हर बार हम गिरते ज़मीन पर
लहूलूहान एक दूसरे को कोसते
अफ़सोस करते
शुरू दिनों के पार

भूल चुके हम
साथ उड़ने के वायदे
चंदन पानी दिए बाती-सा रहना
रहना और रहने को सहना
क्या सीखा था हमने
या यूँ ही कूद पड़े थे आग के समंदर में
कि एक खास उम्र के निरपराध सम्मोहन में

दूर किसी होस्टल में
अनाथ की तरह रहता आया एक किशोर
हमें अलग-अलग दे चुका बधाइयाँ

और यह हमारे साथ के वायदे की
सोलहवीं सालगिरह का दिन
और तमाम चीज़ों के बीच
हम खाली
खाली और इस बूढ़ी पृथ्वी पर
हर पल बूढ़े होते
एकदम अकेले...