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रेत के विस्तार में / नवनीत पाण्डे

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रेत के विस्तार में
रहा निरंतर खोजता
एक और आदमी
रेत कांपी, हिली, उलटी
उगल दिए रेत ने
आदमी ही आदमी
सो रहे थे जाने कब से
रेत के आगोश में
रेत के विस्तार में