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आकड़ा / श्याम महर्षि

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कित्तो दोरो है
मन मांय
उगतै आकड़ै नै
थामणौ,
इण बात रो
अबै घणौ डर है
कै आम
बोंवता थकां भी ई
उग आवै आकड़ा
अठै-बठै-सगळै,

ठा नीं क्यूं
बीज खाद रो
ध्यान
राखतां थकां ई
आम री गुठली
नीं पनपै,
दिनुगै देखां जणां
जमीन सूं
निकळतो अंकुर
आकड़ो हुवै,

आकड़ा अबै
गांव रै खैडां सूं
चाल‘र पूग रैया है
गांव-गुवाड़ अर
घरां री
बाखळां मांय,

आकड़ा अबै
गांव री हदां नै
लांघ‘र
शहर री सड़कां मांय
राप्पा-रोळ
करता-करता
चढ़ गया हैल्यां रै पगोथिया
अर पसरग्या ठेट तांणी,

आकड़ा अबै
रूत री
उडीक नीं करै
बै हरेक महीनां
दूधां-न्हावौ-पूतां फळो दांई
लगो-लग
पनप रैया है,
आप रै दूध री
कमाई सूं
फोड़ रैया है आंख लोगां री

आकड़ा अबै
धीरै-धीरै
आपरी समझ
अर संस्कृति नै
बदळ रैया है,

बै अबै
किणरी आंख
सांपरतै नीं फोड़ै
उण मांय
पनपगी है
न्यारी निरवाळी संस्कृति,

अबै बै
आंख्या फोड़ने खातर
काम लैवे
मिनखां री
आंगळयां,

ग्यासा लोग
प्रस्ताव पास करै
कै आकड़ां रै
गुण माथै
नूंवी दीठ सूं
शोध हुवणौ चाइजै,

आकड़ां री अकडोडिया
अबै टेम री तासीर नै
घणी समझै बै रूत रै बायरै नैं
ओळखै आपरी उण्डी निजरां सूं।