Last modified on 8 जनवरी 2011, at 23:25

उसका हरापन / प्रदीपचन्द्र पांडे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 8 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीपचन्द्र पांडे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> सूखी लक…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूखी लकड़ी
दिन-रात
पड़ी रही पानी में
फिर भी
हरी नहीं हुई
गल गई

धीरे-धीरे
पानी के ऊपर
तैरने लगा
उसका हरापन !