Last modified on 9 जनवरी 2011, at 04:59

अग्नि-4 / मालचंद तिवाड़ी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:59, 9 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मालचंद तिवाड़ी |संग्रह= }}‎ {{KKCatKavita‎}}<poem>बिरहन है अ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बिरहन है अग्नि
बाट जोहती
जल की !
जल जोगी
लौट जाता
अलख जगा कर
देहरी से ही
इस बिरहन की !

अनुवादः नीरज दइया