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चुप / केदारनाथ अग्रवाल

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चुप भी एक पौधा है
पत्थर का बना हुआ
आँसू पर उगा हुआ
दीपक पर खड़ा हुआ
वायु चली, लेकिन वह उड़ा नहीं
ठंड पड़ी, लेकिन वह गला नहीं
रात हुई, लेकिन वह सोया नहीं
सुबह हुई, लेकिन वह जगा नहीं
बीते दिन, लेकिन वह खोया नहीं
बोलता है, लेकिन इस धीरे से
कि उसको हम सुनते नहीं,
सुनने का प्रयास करें
तब भी सुन सकते नहीं।

रचनाकाल: ०९-०३-१९५७