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दर्पण / केदारनाथ अग्रवाल

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न देख तू मुझे
मेरी आँखों से घूरकर,
तिरछी भवें ताने;
डरता हूँ मैं तुझसे
ओ मेरे दुश्मन शीशे!

रचनाकाल: ०४-०२-१९६१