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बबूल / केदारनाथ अग्रवाल

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काल-दंड पर
हरियाली का क्षत्र कंटकित साधे,
पीले छोटे
फूल-फूल की माँस-पेशियाँ खोले,
हँसमुख बली बबूल खड़ा है
मेरे घर के सम्मुख,
धूप कुँवारी से आलोकित,
आरण्यक आक्रोश सरणियों को परास्त कर,
मानवीय गरिमा को मेरी प्रज्ञापित कर
मुझको मेरे इस बबूल से पुष्ट प्रेम है।
सुधी-स्रोत मेरे जीवन का यही क्षेम है॥
इसे न काटो,
कटु कुठार से मेरी काया कट जाएगी,
ध्वस्त, धराशायी होने की
मेरी घड़ी निकट आएगी

रचनाकाल: २८-०७-१९७६, मद्रास