Last modified on 12 जनवरी 2011, at 23:21

नींद-3 / मणिका दास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 12 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मणिका दास |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} Category:असमिया भाषा <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शाम को दूरदराज के गाँव में लोरी सुनकर
अरे नहीं
बच्ची की आकुल पुकार सुनकर
आएगी या नहीं आएगी मैं नहीं जानती

फिर भी
फिर भी कभी-कभी तुझे पुकारने को जी चाहता है
उदास शाम के चौबारे पर
खड़े होकर
गहरी रात के सर्द सीने से
ओ नींद उतर आ उतर आ
एक डग, दो डग नहीं
बगुले के पंख लगाकर तू उड़ कर आ

उड़ कर आ मेरे सूने सीने में
और कितना चलूँगी
अंधेरे में
और देखूँगी कितनी राह
धूप के लिए

मृतक की तरह
सर्द हो गए हैं सपने
बगुले के पंख लगाकर तू उड़ कर आ
उड़ कर आ...

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार