तीन दिनों से तपित सूरज बहक रहा है रोज-ब-रोज
दहके आवर्तों में दक्षिण दहक रहा है रोज-ब-रोज
म्लान हुआ मदरासी मुखड़ा, पंखुरियों का रोज-ब-रोज
सुना नहीं जाता है दुखड़ा जलपरियों का रोज-ब-रोज
रचनाकाल: ०५-०५-१९७६, मद्रास
तीन दिनों से तपित सूरज बहक रहा है रोज-ब-रोज
दहके आवर्तों में दक्षिण दहक रहा है रोज-ब-रोज
म्लान हुआ मदरासी मुखड़ा, पंखुरियों का रोज-ब-रोज
सुना नहीं जाता है दुखड़ा जलपरियों का रोज-ब-रोज
रचनाकाल: ०५-०५-१९७६, मद्रास