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थे / श्याम महर्षि

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थे
जिंया हा बिंया ई हो
अजैताई क्यूं कै
न तो थे
अठीनै गया
अर न थे
गया वठीनैं
थे जठै हा
बठैई हो।

म्हारै देखतां-देखतां
थारै सागै रा लोग
कठै रा कठैई
पूगग्या,
अर थे जका
बठै तांणी
पूगणै सूं चूकग्या
कोई थांनै बावळा
तो कोई कैवै
भोळा हो थे,
कोई इण सूं
कीं बेसी केंवता
नीं चूकै
के इण रो फिरग्यो है माथौ
कोई स्याणप सूं
आ कै देवै
थे सिधान्तवादी हो।
मैं तो आ कैवूं
कै थे जठै हा
बठैई हो ओज्यूं
थे न उठीनै गया न बठीनै।