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रोहिड़ो / श्याम महर्षि

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रोहिड़ो सागवान
सीसम कोई सफेदै रो
रूंख नीं,

थळी रो बिरछ
मरूथल रै रूंखा रो ठाकर
रोहिड़ो
लूठै जागीरदार रै
हेठै नीं पांगरणियां
कामदार दांई
थारै
हेठै ई कोई
बूंटा-रूंखड़ा
नीं पनपै,
महुवै दांई
लाय बळता-सा थारै फूलां रो रंग
आंतरे सूं भरमावै म्हानै
अर रीझावै
कदास इण रो
सुवाद ई हुंवतो महुवै दांई,
सियाळै री डांफर
उन्हाळै री लूंवां सूं
जूझतो रोहिड़ो
ऐकलो
न्यारो निरवाळो
उभो चिड़ावै
काळी-पीळी आंधी नैं
अर लुळ-लुळ करै
सिलाम बिरखा नैं,
रोहिड़ै सूं बणता रैया
गढ़-कोटड़ी-हवेली
अर काच्ची साळ रा किवाड़
कै उण मांय
बसणियां लोगां खातर
नित नूंवी डिजाइन सूं
घड़ीजता रैया
चकळा-बेलण-काठ़डी-कठूता
अर बाजोट,
ठाकर दांई थोथो
कै नीगर हुवणै री
करता रैया परख शताब्दयां सूं
अठै रा लोग थळी मांय
खड़यो इतरावै जुगां-जुगां
सूं रोहिड़ो।