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अफसर / ओम पुरोहित कागद

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आपरी मरजी रो मालक
जको
चावै जकै नै
कणां ईं
घोड़ै चढ़ावै
कणां ई गधै
बीं स्यूं कणां ई
किणी री
इकसार
कणा सधै !