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चन्द्र चमत्कृत / केदारनाथ अग्रवाल

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चन्द्र चमत्कृत
दर्पण-देही
चैत चाँदनी फगुआई है
फूली है
पाकर मोद-मही का
अंक अशंक।
रूप-रूप से परिप्लावित है,
परिपूरित है
प्रकृति प्रदेशी वेश।
पेड़ खड़े हैं
पवन प्रमोदित
मुग्ध निरखते
वाद्य-यंत्र से बजते।
आकाशी
अनुराग अनंगी
व्याप गया,
चहुँ ओर-अछोर
मैं हूँ आत्म-विभोर।

रचनाकाल: १३-०३-१९९१