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मुक़ाबला / रतन सिंह ढिल्लों

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चाँदनी रात में
खेत की
मुरमुरी, सकरीली मिट्टी पर
मुक़ाबला होता था कबड्डी का
अभ्यास होता था कुश्ती का
और
अज़माइश होती थी शक्ति की ।
 
यह कैसा मुक़ाबला है
जो अँधेरे खेत की
जंगली मिट्टी पर होता है
और खेत
पसीने की जगह
तर होते हैं गरम ख़ून से ।
 
यह कैसा मुक़ाबला है
जिसे रात के बहरे कान सुनते है
पेड़ों और तारों की
बंद और ख़ामोश आँखें देखती हैं ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला