Last modified on 17 जनवरी 2011, at 21:03

परवाज़ / रतन सिंह ढिल्लों

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन सिंह ढिल्लों |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> शब्द को धुन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शब्द को
धुन को
आवाज़ को
सुर-ताल को

विचार को
प्यार को
ख़ुशबू को
उड़ान को
मुस्कान को
और तेरी-मेरी
पहचान को

कोई दीवार
कोई तार
कोई बंदूक
कोई तलवार
रोक नहीं सकती
 
आ शब्द बन जाएँ
अर्थ बन जाएँ
सुर-ताज बन जाएँ
और आजाद़ पंछियों की
परवाज़ बन जाएँ ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला