ख़त्म नहीं होता
कभी भी तरंग का सफ़र
बाहर की तरफ़ फैलती है
लौट आती है फिर केंद्र की ओर
अपने ही संगीत संग
नाचती और गाती
रहती है तरंग ।
कब ख़त्म होगा
तरंग का यह सफ़र ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला
ख़त्म नहीं होता
कभी भी तरंग का सफ़र
बाहर की तरफ़ फैलती है
लौट आती है फिर केंद्र की ओर
अपने ही संगीत संग
नाचती और गाती
रहती है तरंग ।
कब ख़त्म होगा
तरंग का यह सफ़र ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला