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बिजली बनी / केदारनाथ अग्रवाल

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बिजली बनी
काँच की चूड़ी,
चम-चम चमकी
चढ़ी कलाई-
खन-खन खनकी,
काम-कुंड में डूबी।

यही
पहेली
अनबूझी थी-
मैंने बूझी-
मुझको
अच्छी
सूझी

रचनाकाल: ३१-१२-१९९१