बिजली बनी
काँच की चूड़ी,
चम-चम चमकी
चढ़ी कलाई-
खन-खन खनकी,
काम-कुंड में डूबी।
यही
पहेली
अनबूझी थी-
मैंने बूझी-
मुझको
अच्छी
सूझी
रचनाकाल: ३१-१२-१९९१
बिजली बनी
काँच की चूड़ी,
चम-चम चमकी
चढ़ी कलाई-
खन-खन खनकी,
काम-कुंड में डूबी।
यही
पहेली
अनबूझी थी-
मैंने बूझी-
मुझको
अच्छी
सूझी
रचनाकाल: ३१-१२-१९९१