Last modified on 21 जनवरी 2011, at 23:04

उस दिन के बादल / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 21 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> लेटे थे गिरि ऊ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लेटे थे गिरि ऊपर हम कोमल दूब पर
फिरते थे इधर उधर शैलों पर नीर भर
करते कुछ परामर्श आपस में सूर्य को
देख-देख शिखरों पर आ-आ एकत्र हो
होती थी नील-नील शैलों की श्रेणियाँ
जिनको थी डरा रहीं पट-पट कर बिजलियाँ
सहसा तूफ़ान वना वन वन चिल्लाए
अम्बर में शब्द हुए भूधर थर्राए
दौड़े घनघोर मेघ हाथों में वज्र ले
आहत हो सूर्य कहाँ जाने जा छिपे ।