धूल मेरे पाँव चूमती है
धन्य होते हैं पाँव मेरे धूल को चूम कर
धूल को चुम्बक-सा खींचता है
वह पसीना, चमकता हुआ मस्तक पर
जो थकान से भीगी बाँहों पर ढुलकता है
धूल में नहा उठता है जब कोई आदमी
एक आभा-सी दमकती है
धूल में नहा कर पूरे आदमी बनते हैं हम
पहाड़ों के, मिट्टी में बदलने की
एक लम्बी कथा बोलती है धूल में
धूप हवा पानी की मार सहता
एक सुदीर्घ पहाड़ उठ खड़ा होता है
प्रागैतिहासिक काल में
जब कोई पुकारता है धूल
धूल में मिले होते हैं
पेड़ों के साथ-साथ, पुरखों की
अस्थियों के अवशेष, जिन्हें
समय की नदी बहा लाती है
जीवन के उर्वर तटवर्ती मैदानों में
हवा के पंखों पर सवार
अजस्र सूर्य किरणों से होड़ लेती, धूल
सबसे पवित्र वस्तु है पृथ्वी पर ।