Last modified on 22 जनवरी 2011, at 15:56

गुंजन ला / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:56, 22 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> तेरा मन मेरा ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरा मन मेरा हो जाए, मेरा मन तेरा हो जाए,
मैं तेरे मन की बात सुनूँ, तू मेरे मन की सुन पाए !

खो जाएँ दुखों के अंधड़ में, जब हम विपरीत दिशाओं में,
मैं तुझे ढूँढ़ता लौटूँ तब, तू मुझे ढूँढ़ती फिर आए !

मेरी अपूर्णता को तेरी, मंगलमय शोभा पूर्न करे,
मेरे जीवन के घट तेरी आँखों की निर्मल कांति भरे !

मेरी चाहों के सागर पर, तू मौन चाँदनी बन फैले,
मेरी आशा के हिमगिरी पर, तू सूर्य किरण बन बिखरे !

मैं राह देखता हूँ तेरी, मुझको शुचि आकर तू कर जा,
जीवन की सूनी डाली को, तू नूतन शोभा से भर जा !

कोंपल ला, हरी पत्तियाँ ला, कोमल-कोमल पत्तों को ला,
गुंजन ला मेरे जिवन में, ओ सुरभित साँसों वाली ! आ !