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घर की याद-6 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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जीवन भर दुख सहा, दुख सहकर
जीवन भर झेली पीड़ा रोकर
जो शांति सुखी को मिलती है
वह मरण शांति हो मेरी

है आज समाप्ति सुख-दुख की
आख़िरी हिचकियाँ ये मेरी
है आज रुदन का अंतिम दिन
आख़िरी सिसकियाँ ये मेरी

जाने किस परदेसी जन की
आँखें तेरे तन लख कर के
इस कुंज-भवन में पड़ा हुआ
छलछला आएँगी करुणा से

जो शांति थकित को मिलती है
वह मधुर शांति हो मेरी