माँ ! परी रूप तू कहाँ हे तेरी वो जादू की छडी वो कलम! जो दे ज्ञान साक्षरता का, आरी तिरछी, रेखायौं की भाषा का, चितरित पर्वत को कागज पर मैने पहचाना, क्यूँ दूर रहा मुझसे रेखयों
माँ ! परी रूप तू कहाँ हे तेरी वो जादू की छडी वो कलम! जो दे ज्ञान साक्षरता का, आरी तिरछी, रेखायौं की भाषा का, चितरित पर्वत को कागज पर मैने पहचाना, क्यूँ दूर रहा मुझसे रेखयों