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सदस्य:दुर्गेश जोशी सुगम

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युग भोध [[कड़ी शीहलाहल पिने वाले ही

शिव बन जाते है

उष्ण ताप तपने वाले ही

तथा गत बन जाते है

अलख निरंजन अलख जगाने वाले ही!

भर्तहरी बन जाते है


उच्चा गरिमा की सीमा अनत गहराहिया छूती है!!

वाही बोधिसतवपाने वाले

ईश्वरीय शवरूप बन जाते है!

समन्वयकारी शासक थे

जनक -से परम ज्ञानी

जो मुनि सुकदेव को भी ज्ञानार्जन करवाते है!!

हुई मलिनताए आजकल परम विकसित

लोग यस्लिप्सा में ही भटक जाते है!!

बढ़ रहा है एसा भद्दा आलाप -स्वर जो संगीत

मुख से शंकर बीज होते है

चाहत की आकांक्षा आरोपित हो मनुजो पर

जबकि स्वार्थ की कामधेनु दुहने लग जाते है!!

उपासना चरमरा गयी भावों के पनघट सुने दिखाते

थोड़ी -सी आत्मा सथापित से

कृतयुग के भाव बन जाते है !!

सर्प की गति -सा पाप का बाँध उमड़ पडा

यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानि:भवती भारत !

अभ्युत्यानाम अधर्मस्य तदात्मन स्राजामी अहम्

परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुश्क्र्ताम !!

धर्म संथाप्नार्थय संभवामि युगे युगे !!

श्री कृष्ण गीता में समझाते है

सुगम कोष भरकर परम्परा का

स्वर्धन करे हर प्राणी के मन को

याग्वाल्क्य शास्त्रथ कर

परितोशिकरुपेंगोये ले जाते है!!

मठोंमें संकल्प दोहरहा

करता था विवेकपूर्ण

अब तो उदार पूर्ति हेतु शब्दामृत

पर ताला लगते है !!

धर्म वर्ण नैतिकता के ऊपर उठे

धुर्व रूप बन विभूषित हो जाते है !!


हलाहल पिने वाले शिव बन जाते है !!

र्षक]]