Last modified on 29 जनवरी 2011, at 04:12

गुदगुदी / अनुराग वत्स

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:12, 29 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराग वत्स |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारी हँसी क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारी हँसी की अलगनी पर मेरी नींद सूख रही है ।
तुम उसे दिन ढले ले आओगी कमरे में, तहा कर रखोगी सपने में ।
मैं उसे पहन कर कल काम पर जाऊँगा और मुझे दिन भर होगी गुदगुदी ।