थक के रह जाते हैं इस्तेदलाल के जिस जा क़दम
टूट जाता है पहुँच कर जिस जगह मन्तिक़ का दम ।
ख्च्वाबे अक्लो होश की मजहूल ताबीरों से दूर
फ़लसफ़ी की किस तरह और क्यों की ज़ंजीरों से
शब्दार्थ
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