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इन्तेसाब / मख़दूम मोहिउद्दीन

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इन्तेसाब

हमको बे-मायगी<ref>अनजानापन</ref> ज़ब्त<ref>संयम</ref> दिखाना ही पड़ा
दिल की बातों को तेरे सामने लाना ही पड़ा ।

मैं जो ख़लवत<ref>एकांत</ref> में भी डरता था सुनाने के लिए
सरे-बाज़ार वही गीत सुनाना ही पड़ा ।

खींच लाया तुझे परदे से मेरा ज़ौक़-ए-नियाज़<ref>प्रार्थना का स्वाद</ref>
मेरे पर्दे में तुझे जल्वा दिखाना ही पड़ा ।

थरथराते हुए हाथों से धड़कते दिल से
तेरे रुख़ से तेरे आँचल को हटाना ही पड़ा ।

शब्दार्थ
<references/>