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नींद / मख़दूम मोहिउद्दीन

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ये किस पैकर की रंगीनी सिमट कर दिल में आती है
मेरी बेकैफ़ तन्हाई को यूँ रंगी बनाती है ।

ये किसकी जुम्बिशे मिज़गाँ<ref>पलकों की हरकत</ref> रबाबे दिल<ref>दिल का रबाब (एक साज का नाम)</ref> को छूती है
ये किसके पैरहन<ref>पोशाक</ref> की सरसराहट गुनगुनाती है ।

मेरी आँखों में किसकी शोखी-ए-लब का तस्सव्वुर<ref>कल्पना</ref> है
के जिसके कैफ़ से आँखों में मेरी नींद आती है ।

सुकूत-ओ-शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीरे काकुले शब गूं<ref>रात के बाँधे हुए केशों का जूड़ा</ref> बना कर मुस्कराती है ।

मेरी आँखों में घुल जाती है कैफ़े नज़र<ref>आनन्द भरी दृष्टि</ref> बनकर
मुझे क़ौसे क़जा<ref>इन्द्रधनुष</ref> की छाँव में पहरों सुलाती है ।

सहर तक वो मुझे चिमटाए रखती है कलेजे से
दबे पाँवों किरण खुरशीद की आकर जगाती है ।

शब्दार्थ
<references/>