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शाम / आन्ना अख़्मातवा

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शॉल के पीछे अपने हाथों को मज़बूती से जकड़ लेती हूँ मैं
इतनी ज़र्द क्यों दिख रही हूं आज की शान
... शायद मैंने ज़्यादा ही पिला दी थी उसे
दुःख और हताशा की कड़वी शराब

कैसे भूल सकती हूँ! -- वह बाहर चला गया था,
दर्द की रेखा में खिंचे हुए थे उसके होंठ
पगलाई सी मैं दौड़ती चली गई थी
सीढ़ियाँ उतर कर उसके पीछे, सड़क तक

मैं चिल्लाई: "मैं तो मज़ाक कर रही थी, सच्ची!
मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ, मैं मर जाऊँगी" - और
एक भयानक, ठण्डी मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर
उसने हिदायत दी मुझे: "बाहर हवा में मत खड़ी रहो!"


अंग्रेज़ी से अनुवाद :