कोई किसी को बताता नहीं कि क्या खोया
किसी को याद नहीं है कि दिल पे क्या गुज़री
दिलों में बंद हैं तलख़ाब-ए-हयात<ref>जीवन का कड़वा पानी</ref> के खुम<ref>प्याला, पात्र</ref>
कोई ज़बान से कहता नहीं के ग़म क्या है ।
हर एक ज़ख़्म के अंदर है ज़ख़्म, दर्द में दर्द
किसी की आंख में काँटें, किसी की आँख में फूल
कहं गुलाब, कहीं केवड़े की बस्ती है
ये सरज़मीन इक-इक बूँद को तरसती है ।
शब्दार्थ
<references/>