Last modified on 29 दिसम्बर 2007, at 22:42

एक देह / मंगलेश डबराल


त्वचा आवाज़ों को सुनती है

ख़ामोशी की अपनी एक देह है

पैरों में भी निवास करती हैं संवेदनाएँ

पीठ की अपनी ही एक कहानी है

अभी-अभी दबी हथेली का

धीरे-धीरे उभरना

कुछ कहता है देर तक


(1990 में रचित)