कुछ क़ौसे क़ज़ह<ref>इन्द्रधनुष</ref> से रंगत ली कुछ नूर चुराया तारों से
बिजली से तड़प को माँग लिया कुछ कैफ़<ref>आनन्द</ref> उड़ाया बहारों से ।
फूलों से महक शाखों से लचक और मंडवों से ठंडा साया
जंगल की कवाँरी कलियों ने दे डाला अपना सरमाया ।
बदमस्त जवानी से छीनीं कुछ बेफ़िक्री, कुछ अल्हड़पन
फिर हुस्ने जुनूँ<ref>सौन्दर्य का उन्माद</ref> परवर ने दी आश्फ़्तासरी<ref>पागलपन</ref> दिल की धड़कन ।
बिखरी हुई रंगी किरनों की आँखों से चुनकर लाता हूँ
फ़ितरत के परेशाँ नग़मों से इक अपना गीत बनाता हूँ ।
फ़िरदौसे ख़याली<ref>स्वर्ग की कल्पना</ref> में बैठा इक बुत को तराशा करता हूँ
फिर अपने दिल की धड़कन को पत्थर के दिल में भरता हूँ ।
शब्दार्थ
<references/>