Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 14:36

अधूरा खत / भरत ओला

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत ओला |संग्रह=सरहद के आर पार / भरत ओला}} {{KKCatKavita‎}} <Po…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अपनी लाश से
ठीक बारह दिन पहले
आया था
नेतराम का खत

जेठ में छूट्टी आऊंगा
और चौमासे<ref>वर्षा ऋतू</ref> से पहले-पहले
दो आसरे<ref>मकान का छोटा भाग</ref>
तो जरूर ही बनाऊंगा

लिछमड़ी के वास्ते
सूट खरीदा है
आते वक्त लाऊंगा

और जिस बात की चिंता
तुम्हें खाए जा रही थी
वह भी देख लिया है
उसका भी फोटू दिखाऊंगा

तूं चिंता न कर माँ
फागण की छुट्टी में
लिछमड़ी के
हाथ भी पीले कर जाऊंगा

और सुन !
दोनो वक्त
चटनी न रगड़ा कर
कभी सब्जी भी
मंगवा लिया कर

एक तारीख को
तनखा मिलेगी
फिर भेज रहा हूं
पाँच सौ का मनिआर्डर

बेटे का खत सुनते
डबडबाई थीं
माँ की आँखें
उतर आया था
बूढ़ी छाती में भी दूध

हजारी उम्र हो तेरी
आशीष का हाथ
नही पहूंच पाया था
नेतराम के सिर तक

बेखबर
तमाम तमन्नाओं से
आंगन के बीचों-बीच
तिरंगे में लिपट़ी पड़ी है
नेतराम की लाश

शब्दार्थ
<references/>