Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 16:09

रहनुमा / भरत ओला

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:09, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत ओला |संग्रह=सरहद के आर पार / भरत ओला}} {{KKCatKavita‎}} <Po…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


तू अच्छी तरह से
जानता है
यूं बक-बक करने से
समस्या का
समाधान नही हुआ करता

फुटपाथ पर खड़ा होकर
जुगाली करता है शब्दों की
औकात के बिना
आदमी का मान नहीं हुआ करता

वे सामने
कलम साधे खड़े
फितरती लोग है
खुद भूखे हैं
दूसरों को भी भूखा मारना चाहते हैं
असल बात यह है
कि वे पंथ बढ़ाना चाहते है

दो जून की रोटी नहीं
और फितरत पालता है
हम कह रहे हैं न
सोच मत !

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है
फल की इच्छा नहीं
कर्म करो

दिल से नहीं
दिमाग से काम लो
इन झमेलों में कुछ नहीं पड़ा
रोटी शब्द नहीं
पथार देगा

जाओ !
काम पर जाओ
ईंट थापो, पकाओ
जाओ !
इस बार तुम्हें माफ किया
हम तुम्हें
आज भी पगार देगा।