Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 16:40

उजड़ा संगीत / भरत ओला

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


हां
यहीं था मेरा गाँव
यहीं था पनघट
लंहगे-बोरले में
बणी-ठणी
बास गुवाड़ की लुगाईयां
जच्चा<ref>प्रसूता स्त्री</ref> संग आती
सुगणी बुआ
पराते चके सिर पर
‘पीळो’<ref>मांगलिक लोकगीत</ref> गाती
टींगर धमकाती
घूघरी बांटती

यहीं हुआ करता था दंगल
दंड पेलते
मुगदर फिराते
धींगामस्ती करते
लड़ा करते थे कुस्ती

चमक चानणी रात में
बजा करते थे डफ
गाई जाती थी धमाल
हुआ करती थी घोड़ा कबड्डी
यहीं जोहड़ की पाल पर
हुआ करता था जाल
इसी पर
खेला करते थे कुर्रांडंडा<ref>प्रसूता स्त्री</ref>
यहीं हुआ करता था ताल
गुल्लीडंडा, मारदड़ी<ref>ग्रामीण खेल</ref>, घुथागिंडी<ref>क्रिकेट जैसा एक ग्रामीण खेल</ref>
लगा करते थे टोरे<ref>प्रसूता स्त्री</ref>
पिदाया करते थे टींगरों<ref>खेल में विपक्षी खिलाड़ी को अधिक दौड़ाना</ref> को

यहीं, यहीं
टणमणाया करती थीं
बैलों के गलें में घंटियां
रेहडू पर बैठा रामदीन
बजाया करता था अलगोजे

हांडीबगत<ref>दोपहर बाद का समय</ref>
बजता था ऊखल-मूसल का संगीत
टिक जाती थी खिचड़ी
हारे<ref>बड़ा चुल्हा</ref> बीच

हाली<ref>कृषक</ref> आता
पाटड़े<ref>लकड़ी की पट्टी</ref> पर बैठ नहाता
आंगण बीच पसारा मार
सबड़कता चारों ओर
जिन्दगी का रोजमर्रा संगीत

कहां गया वह गांव
वह गीत
किसने तोड़ी भला
यह रीत ?

शब्दार्थ
<references/>