तुम्हारे चेहरे पर
सावन सा
टपकता गुरूर
तुम्हारा अपना तो
नहीं हो सकता
तुम्हारे बाप को
मैंने
सेठ के मुनीम से लेकर
पटवारी और कोटवाल तक के सामने
हाथ जोड़
गिड़गिड़ाते देखा है
निश्चित ही
यह हथौड़े सी डांट
और छैनी से बोल
तुमने
अपने किसी
बिगड़ैल सहपाठी से लिए है
मैं जानता हूं
मरीज के परिजन को
झिड़कते वक्त
तुम्हारे बाप का
दड़े पर उगे कैर सा चेहरा
तुम्हारी बिल्ली सी आंखों के सामने
जरूर आया होगा
पर तुमने
कस्बाई छोरी की
लटों की तरह
झिड़क दिया होगा
यह जानते हुए भी
कि तुम्हारे बाप ने
तुम्हे डॉक्टर बनाने का संकल्प
यहीं
तुम्हारी मां की
लाश उठाने के वक्त लिया था।