सप्ताह की कविता | शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया रचनाकार: रसूल |
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना । एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल .... हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल.... कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....