Last modified on 6 फ़रवरी 2011, at 05:58

आदिवासी स्त्रियाँ / निर्मला पुतुल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:58, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मला पुतुल |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> उनकी आँखों की…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उनकी आँखों की पहुँच तक ही
सीमित होती उनकी दुनिया
उनकी दुनिया जैसी कई-कई दुनियाएँ
शामिल हैं इस दुनिया में / नहीं जानतीं वे

वे नहीं जानतीं कि
कैसे पहुँच जाती हैं उनकी चीज़ें दिल्ली
जबकि राजमार्ग तक पहुँचने से पहले ही
दम तोड़ देतीं उनकी दुनिया की पगडण्डियाँ

नहीं जानतीं कि कैसे सूख जाती हैं
उनकी दुनिया तक आते-आते नदियाँ
तस्वीरें कैसे पहुँच जातीं हैं उनकी महानगर
नहीं जानती वे ! नहीं जानतीं ! !