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तूर / मख़दूम मोहिउद्दीन

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यहीं की थी मुहब्बत के सबक की इब्तेदा मैंने
यहीं की जुर्रते इज़हार-ए हर्फ-ए मुद्दआ मैंने ।
यहीं देखे थे इश्वे नाज़ो-अंदाज़े हया मैंने
यहीं पहले सुनी थी दिल धड़कने की सदा मैंने ।
यहीं खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी ।

दिलों में इज़्दहामे आरजू लब बंद रहते थे
नज़र से गुफ़्तगू होती थी दम उलफ़त का भरते थे ।
न माथे पर शिकन होती, न जब तेवर बदलते थे
ख़ुदा भी मुस्कुरा देता था जब हम प्यार करते थे ।
यहीं खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी ।

वो क्या आता के गोया दौर में जामे शराब आता
वो क्या आता रंगीली रागनी रंगी रबाब आता ।
मुझे रंगीनियों में रंगने वो रंगी सहाब आता
लबों की मय पिलाने झूमता

शब्दार्थ
<references/>

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