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रक़्स / मख़दूम मोहिउद्दीन

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रक़्स<ref>नाच, नृत्य</ref>

वो रूप रंग राग का पयाम ले के आ गया
वो कामदेव की क्मान जाम ले के आ गया

वो चाँदनी की नर्म-नर्म आँच में तपी हुई
समन्दरों के झाग से बनी हुई जवानियाँ
हरी-हरी रविश पे हमक़दम भी हमकलाम भी

बदन महक-महक के चल
कमर लचक-लचक के चल
क़दम बहक-बहक के चल

वो रूप रंग राग का पयाम ले के आ गया
वो कामदेव की कमान जाम ले के आ गया

इलाही ये बिसाते-रक़्स<ref>नृत्य का आँगन</ref> और भी बसीत<ref>और भी व्यापक हो</ref> हो
सदाए तीशा<ref>कुदाल चलाने वाले की आवाज़</ref> कामरा<ref>कामयाब</ref> हो कोहकन<ref>पहाड़ काटने वाला अर्थात फ़रहाद</ref> की जीत हो ।

शब्दार्थ
<references/>