इतनी पारदर्शी कि आकाश
इतनी निर्मल कि शून्य
इतनी निष्कलुष कि असम्भव
फिर भी
अगर देखना ही चाहते हो मुझे
तो तुम्हें मिलाना होगा मुझमें
कोई रंग
भले ही अपने रक्त का
ख़ालिस हवा हूँ मैं
इलहामों वाले रेगिस्तान की
निर्गन्ध मदहोश कर लेने वाली कस्तूरी
भोट देश की उपत्यकाओं की
मर्माहत, अदृश्य
हिंसक आत्मा
मैंने आग लगा दी है इन्द्रधनुष में...
फिर भी न जाने क्यों
पसीने-सा छलछला उठता है मेरे ललाट पर
सौन्दर्य की विस्मृति में खोया हुआ
मेरा किशोर्य
जिसने थाम रखी है अभी भी
एक बहुत ही प्यारी
और विचित्र पृथ्वी
कंदुक-सी