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छतरियाँ / उपेन्द्र कुमार

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समुद्रों के पार से
आयी हवाएँ
रूपान्तरित स्वयं को
वर्षा की बूँदों में
बरसती हैं जब हमारे सिरों पर
तो जानते हैं
उनके विरूद्ध हम
अपनी छतरियाँ

गौर से चीजों को
देखने-परखने वाले अवगत होते हैं भयावह सत्यों से
मसलन
छातों की
कमानियाँ जर्मन
और कपड़ा विलायती

जब सीख लेते हैं हम
पुर्जा-पुर्जा अलगा कर
जोड़ना दुबारा
तक कहीं जान पाते हैं
जिस टार्च के प्रकाश में
चलाते रहे हैं
अपना काम
लगी हुई हैं उसमें
आयातित बैटरियाँ

आज के दिन मेरे लिए
सबसे विस्मयकारी सूचना है-
सुबह जो आदमी मिला था
चौराहे पर
भीख का कटोरा लिए
वह एक खाते-पीते घर का बुजुर्ग है