Last modified on 11 फ़रवरी 2011, at 13:14

ऋचाओं जैसे / उपेन्द्र कुमार

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:14, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उपेन्द्र कुमार |संग्रह=उदास पानी / उपेन्द्र कुम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस सूखी झुलसी
त्वचा में भी
कर देता है पैदा
सिहरन
यह सोचना
कि जो हवा छू रही है मुझे
आई होगी तुम्हें भी छूकर
और तुम्हें पता भी नहीं
इस बात का

बावजूद सब कुछ के
एक हैं
तुम्हारे और मेरे
वे पर्वत शिखर
जिन्हें तुम छूती हो
नित्य दृष्टि से
और मैं
स्मृति में

उन शिखरों पर
जमा श्वेत हिम
कब गलकर गिर जाता है
तुम्हारी आँखों से
मैं जान भी नहीं पाता
परन्तु जानता हूँ-
ऐसा बहुत-कुछ
जो तुम सोचती हो
मैं नहीं जानता

जैसे कामना के
उस सिरे से
जो तुम्हारे पास है
उपजा वह भाव
जिसमें अंकित है तुम्हारा
निःशब्द चुम्बन
अथवा प्राणों की वह आग
जो अपनी दुलार भरी छुअन से
रोमांचित करती
हमारे भीतर उतर
ले जाती है वर्षों पीछे

तुम्हारे होंठों के
छुअन की
मादकता लिए गीत
पहुँचते हैं
समय के दूसरे छोर पर बैठे
मुझ तक
अपने अमरत्व में-
ऋचाओं जैसे