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पुश्तैनी मकान / उपेन्द्र कुमार

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इस बार जब गाँव गया
तो देखा-थोड़ा और ढह गया था
मेरा पुश्तैनी मकान

आने की खबर सुन
लोग मिलने आए
पता नहीं किससे
मैं सामने पड़ा/तो मुझी से कहा
मरम्मत नहीं हुई
तो गिर जाएगा
जल्दी ही किसी दिन
पूरा का पूरा मकान शायद इसी बरसात में

गरमी के दिन थे
बरसात की बात से
ठंडक मिली/अच्छा लगा
यह सोचकर भी
कि मुक्त होने वाला है शीघ्र ही
धरती का वह टुकड़ा
जिसकी छाती पर
नींब एक ऐड़ियाँ धसा
नाखून गड़ा
खड़ा है मेरा
पुश्तैनी मकान