Last modified on 12 फ़रवरी 2011, at 02:35

झंकार / अक्कितम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:35, 12 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्कितम |संग्रह=अक्कितम की प्रतिनिधि कविताएँ / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाँबी की शुष्क मिट्टी के
अन्तः अश्रुओं के सिंचन से
पहली बार विकसे पुष्प!

मानव वंश की सुषुम्ना के छोर पर
आनन्द रूपी पुष्पित पुष्प!

हजारों नुकीली पंखुड़ियों से युक्त हो
दस हजार वर्षों से सुसज्जित पुष्प!

आत्मा को सदा
चिर युवा बनाने वाले
विवेक का अमृत देने वाले पुष्प!
सुश्वेत कमल पुष्प!
तू निरन्तर सौरभ का कर संचार



मैं इसे ग्रहण कर उनींदे मन से
प्रज्ञा की पलकें खोल रहा हूँ

मैं दीनानुकम्पा में वाष्पित हो
गीत की तरह हवा में तैर रहा हूँ

मैं सोमरस व सामवेद पर विजय प्राप्त करती
एक लय - रोमांच बनकर उभर रहा हूँ।

हिन्दी में अनुवाद : उमेश कुमार सिंह चौहान