Last modified on 15 फ़रवरी 2011, at 16:14

बंगाल / मख़दूम मोहिउद्दीन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:14, 15 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़दूम मोहिउद्दीन |संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक होकर दुश्मनों पर वार कर सकते हैं हम
ख़ून का भरपूर दरिया पार कर सकते हैं हम ।
काँग्रेस को, लीग को बेदार कर सकते हैं हम
ज़िन्दगी से हिन्द को सरशार<ref>परिपूर्ण</ref> कर सकते हैं हम ।
          वो दरे<ref>दरवाज़ा</ref> हिन्दोस्ताँ वो सहरो-नग़मे<ref>सुबह और गीत</ref> का दयार<ref>स्थान</ref>
          दीदनी<ref>देखने योग्य</ref> है आज इसकी नातवानी<ref>शक्तिहीनता</ref> की बहार ।
भूख का बीमारियों का बम के गोलों का शिकार
पीठ में जापान का खंजर तो सर पर सूदखार ।
          एक होकर दुश्मनों पर वार कर सकते हैं हम
          ख़ून का भरपूर दरिया पार कर सकते हैं हम ।
          काँग्रेस को लीग को बेदार कर सकते हैं हम
          ज़िन्दगी से हिन्द को सरशार कर सकते हैं हम ।
क़ब्र के रोज़न<ref>सूराख़</ref> से अपना सर निकाला मौत ने
बेसहारा जान कर मारा है भाला मौत ने ।
          ख़ानदानों को बना डाला निवाला मौत ने
          शीरखारों<ref>दूध पीने वाला बच्चा</ref> को चबा कर थूक डाला मौत ने ।
एक होकर दुश्मनों पर वार कर सकते हैं हम
ख़ून का भरपूर दरिया पार कर सकते हैं हम ।
काँग्रेस को, लीग को बेदार कर सकते हैं हम
ज़िन्दगी से हिन्द को सरशार कर सकते हैं हम ।
          उम्मते<ref>विशेष धार्मिक समुदाय वाले</ref> मरहूम हो या मिल्लते ज़ुन्नारदार<ref>हिन्दू धर्म</ref>
          उनके फ़क़ों की न गिनती है न लाशों का शुमार ।
मर्द-औ ज़न शेख़ो बहरमन सब क़तार अन्दर क़तार ।
आह सूखी छातियों की चीख़ बच्चों की पुकार ।
          एक होकर दुश्मनों पर वार कर सकते हैं हम
          ख़ून का भरपूर दरिया पार कर सकते हैं हम ।
          काँग्रेस को लीग को बेदार कर सकते हैं हम
          ज़िन्दगी से हिन्द को सरशार कर सकते हैं हम ।
आज अपना घर अदू<ref>दुश्मन</ref> की रहगुज़र<ref>मार्ग</ref> ही क्यों न हो
हम बढ़ जाएँगे रास्ता पुरख़तर ही क्यों न हो ।
          हम लड़े जाएँगे दुश्मन बदगोहर<ref>अत्याचारी, दोगला</ref> ही क्यों न हो
          अपनी वर्दी ख़ाको खूँ मेम तरबतर ही क्यों न हो ।
एक होकर दुश्मनों पर वार कर सकते हैं हम
ख़ून का भरपूर दरिया पार कर सकते हैं हम ।
काँग्रेस को, लीग को बेदार कर सकते हैं हम
ज़िन्दगी से हिन्द को सरशार कर सकते हैं हम ।

शब्दार्थ
<references/>