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मतीरा / कन्हैया लाल सेठिया

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कियां
ल्यायो हूं
उठा‘र
सोटां सट्टै
पीड़ रै खेत स्यूं
सबदां रा मतीरा
जाणै आ बात
म्हारो जीव ?
अबै भंलाई कर‘र लीरा
कुचर कुचर‘र
खुपरयां
पिओ अमरित सो
पाणी
पण अती थानै
म्हारी भोळावण
राखीज्यो बीज ठाया
आगली रूत ताणी !