Last modified on 17 फ़रवरी 2011, at 16:55

कविता.. / कन्हैया लाल सेठिया

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:55, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=क-क्को कोड रो / कन्ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लुक्योड़ा है
रूंख रै
रूखै करूप कठोर तणैं में
अणगिनत कंवळा पानड़ा
फूठरा फूल, मीठा फळ
पण बै आसी बारै
जद बुलासी
रूत रो बायरो
बिंयां ही
काढयां
सबदां रो घूंघटियो
बैठी अडीकै
कोई दीठवान नै
अनन्त अरथां री घिराणी
लजवन्ती कविता !