फिरतां ही
बगत रो पसवाड़ो
बैठग्यो पींदै
मोटो सूरज,
कढावै
दिन रै
धणी री कूट
बौछरड़ा दिवला,
निसरग्या बारै
तोड़‘र अंधेरै री
काल कोटड़ी
बागी तारा
पण कोनी चुण सक्या
एक मत हू‘र
कोई नेता
फाटगी
आपसरी की
थूका फजीती में
फेर भाक !
फिरतां ही
बगत रो पसवाड़ो
बैठग्यो पींदै
मोटो सूरज,
कढावै
दिन रै
धणी री कूट
बौछरड़ा दिवला,
निसरग्या बारै
तोड़‘र अंधेरै री
काल कोटड़ी
बागी तारा
पण कोनी चुण सक्या
एक मत हू‘र
कोई नेता
फाटगी
आपसरी की
थूका फजीती में
फेर भाक !